Friday, 19 March 2010

क्षितिज ने पहली बार चादर हटाई है

दिल में अजीब सी उलझन है
पर लगता यूँ है ,कुछ उम्मीद नजर आई है.

सब कुछ भुला देने को मन करता है,
तो ऐसी कौन सी बात याद आई है.

नजरों के सामने भीड़ दिखाई पड़ती है,
पर अन्दर तो दिखती तन्हाई है.

अँधेरा भी है और सन्नाटा भी,
पर देखा तो लगा, कोयल गाई है.

मौसम थमा सा और खुला सा दिखाई देता है,
फिर कहाँ से बिजली कि चमक आई है.

तन में थकन और आँखों में नीद है,
पर होंटों पर जागृत सी मुस्कान उभर आई है.

दिमाग ने मान ही लिया था इसे उदासी,
पर दिल ने कहा खुशी की झलक पाई है.

धरातल भी दिखाई पड़ता है, और आसमां भी,
क्षितिज ने पहली बार चादर हटाई है..........

2 comments:

Amitraghat said...

"बहुत ही सुन्दर कविता रूपम......"
amitraghat.blogspot.com

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया.