Saturday 12 June, 2010

के प्याला जिंदगी का......

                              मत तौल के ये जिंदगी  बोझ नहीं है.
मत सोच के ये जिंदगी सोच नहीं है.
जी गया है ,जिसने खुद को पा लिया है 
      के  प्याला जिंदगी का मजे से पिया है......

बैसे तो दुनिया का कोई छोर नहीं है.
चला जा कहीं भी, तू कोई और नहीं है 
वाह रे भगवन ये तूने कैसा वर दिया है. 
दूसरों की सोच ने, अपंग कर दिया है.

तू ही है आसमां ,धरा भी तू ही  है.
दुनियां की नेमतों से भरा भी तू ही है .
अर्थ की तलब  ने, अनर्थ कर दिया है.
सुखों की तलाश ने, दुखों से भर दिया है 

जीवन जीने की, परिभाषाएं नहीं होती.
इस बात को समझने भाषाएँ नहीं होती.
समझने की चाह में, विवेक खो दिया  है .
युगों-युगों से कटुता का बीज बो दिया है .

न समझ इसे संघर्ष,ये कुस्ती नहीं है 
जीतने की प्यास कभी बुझती नहीं है.
बैर ने हसी से कितना दूर कर  दिया है.
प्याला इस जिंदगी का चूर कर दिया है .

निर्झर इस नदी को वेरोक बहने दो.
इसकी ये कहानी , इसी को कहने दो .
जीवन वही जो खुद की शर्तों पे जिया  हो.
के प्याला  जिंदगी का मजे से पिया हो......

Friday 4 June, 2010

शायद कहीं ऐसी भी दुनिया होगी

शायद कहीं ऐसी भी दुनिया रही  हो 
की मीरा बेरोक नृत्य करती रही हो .

ह्रदय  में उमड़ा हुआ अंतहीन सावन होता हो 
कलियाँ खिलती रहें फूलों पर ताउम्र योवन हो. 

पर्वत का पत्थर व्रक्षों का वोझ सहता हो 
वेखोफ़ जहाँ जीवन एक साथ रहता हो .

घोसलों में  जहाँ  उन्मुक्त सवेरा सांस लेता हो 
और भोर से थक कर अँधेरा निश्चिंत सोता हो. 

जहाँ प्रेम का फरमान हवायें गुनगुनाती हों
हर राह से होकर नदियाँ फिर मिल जाती हों .

अस्तित्व का विस्तार दिशायें रोक न पाती हों 
समय सीमायें तोड़कर सदियाँ खुद खो जाती हों. 

जहाँ दिल खोल कर दीवाना भीग सकता हों 
जहाँ उन्मुक्त हों नवजात जीना सीख सकता हों. 

जहाँ माया का रूपरंग ,मायना समझ न आता हों 
जीवन का मतलब है बस्तु समझा न जाता हों.