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Friday, 4 June 2010

शायद कहीं ऐसी भी दुनिया होगी

शायद कहीं ऐसी भी दुनिया रही  हो 
की मीरा बेरोक नृत्य करती रही हो .

ह्रदय  में उमड़ा हुआ अंतहीन सावन होता हो 
कलियाँ खिलती रहें फूलों पर ताउम्र योवन हो. 

पर्वत का पत्थर व्रक्षों का वोझ सहता हो 
वेखोफ़ जहाँ जीवन एक साथ रहता हो .

घोसलों में  जहाँ  उन्मुक्त सवेरा सांस लेता हो 
और भोर से थक कर अँधेरा निश्चिंत सोता हो. 

जहाँ प्रेम का फरमान हवायें गुनगुनाती हों
हर राह से होकर नदियाँ फिर मिल जाती हों .

अस्तित्व का विस्तार दिशायें रोक न पाती हों 
समय सीमायें तोड़कर सदियाँ खुद खो जाती हों. 

जहाँ दिल खोल कर दीवाना भीग सकता हों 
जहाँ उन्मुक्त हों नवजात जीना सीख सकता हों. 

जहाँ माया का रूपरंग ,मायना समझ न आता हों 
जीवन का मतलब है बस्तु समझा न जाता हों.