भीड़तंत्र और भीरुतंत्र
जो मिल बैठे
एक साथ
लोकतंत्र के कातिल
करते लोकतंत्र की
बात।
दामन पर
इनके देखिये है
कितने कितने दाग
प्रजातंत्र के मिथक
को डसते इच्छाधारी
नाग।
हर दिशा
से आवाज़ है
आयी, है चारो
और ये शोर
लोकतंत्र की लाज़ बचाते
हत्यारे, पाखंडी, चोर।
भ्रष्टाचारी इस प्रजा
का ये भ्रष्टाचारी
राजा
चोरों में हलचल
मच गयी, खुला
२-g का दरवाज़ा।
कोलगेट के घाट
पर, कॉमनवेल्थ की
अल्वाडी
अच्छे खासे देश
की सेहत इन्होने
बिगाड़ी।
अपनी अपनी
बकते रहे, नहीं
दिया सच्चे मन
का साथ
गिनो चॉकलेट
अब गुब्बारे, सब
खतम हो गयी
बात।
बुलेटप्रूफ जैकेट से
ढकते, ये 53 इंच का
सीना
कहीं अखाड़े
लड़ मरो, अभी
देश को और
दिनों है जीना।
छुरीबाज़ फिर दंगाई
अब विकासपुरूष हैं
आप
जनमानस की तुच्छ
मति में दफ़न
हो गए पाप।
लोकतंत्र पर बाँध
बनाते, अनशन देखो
ये करबाते, बजाते
सबके बारह
सारी दुनिया
पीतल कि मैं
स्वर्णिम बेबीडॉल, बन गया
इनका नारा।
साधू जैसे
वेश में देखो,
नेताओं के बाप
भगवा मैला
मत करो, सूट
सलवार पहन लो
आप।
जनता शायद
भूल गयी, हम
लोकतंत्र के पांव
पहले खुद
को तौल ले,
फिर नेताओं पे
दांव।
मारा-मारी,
छल कपट, दिनोंदिन
बढ़ता जाता
आबादी की बात
करो, जो है
इन सबकी माता।
सीढ़ी चढ़िए
एक एक, वरना
गिरिएगा औंधा
मिट्टी, पानी और
समय, बीज तब
बने है पौधा।
दोष लगाना
छोड़िये, वेवकूफों को दें
आराम
स्वतंत्रता, अधिकार जानिए,
कीजिये रचनात्मक कोई काम।
बैर, बुराई,
अहम समझिए, भीड़
छोड़िये आप ही
बढ़िए
समस्या का मूल समझिए, देश छोड़िये ब्रह्मांड को गढ़िये।
2 comments:
तभी तो वर्नाल्ड शा ने प्रजात्रन्त्र को मूर्ख और धूर्ततंत्र से परिभाषित किया है.
..बहुत सही .. सामयिक चिंतन ...
सटीक, समसामयिक पंक्तियाँ ...
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