Tuesday, 22 September 2009

क्या कहा .... प्रेम हो गया?


बनने लगा था इन्सां,पर अब रहा नहीं
गर यूंही था मिटाना ,तो फिर बनाया क्यों था

खोता चला गया हूँ ,ज़माने की भीड़ में तो
गर छोडनी थी ऊँगली तो अपना बनाया क्यों था

बढ़ने की मैं अकेले ,कर ही रहा था कोशिश
सहारा यूंही था छुडाना,तो साथ आया क्यों था

भरोषा किया था इतना, की आँखे नहीं रही ये
गर चराग था बुझाना ,थो फिर जलाया क्यों था

बनने लगी है अब राहें खुद अपनी तर्ज पर ही
रास्ता यूंही था भुलाना, तो फिर दिखाया क्यों था

समझा नहीं हूँ अब तक, जुनुने-ए-इश्क को मैं
गर दूर ही था जाना ,तो पास आया क्यों था

जवां हो चली ये लपटें,चिंगारी से अब तलक तो
आशियाँ यूंही था जलाना, तो फिर सजाया क्यों था

समझा नहीं मैं मकसद ,अब तक भी इश्क के ये
गर होश में था आना,तो फिर दीवाना क्यों था

जीवन के कई पड़ाव है ,कई रंग है. हर एक को समझना, और उन्हें जीना ही हमारा मकसद है, अगर आप चाहते है की जीवन को जी सकें, तो जरुरी है आप के पास प्रेम का सहारा होना चाहिए ,अन्यथा जीवन काटने से ज्यादा कुछ नहीं.
वैसे तो प्रेम एक ही संवेदना है ,पर अनुभव न कर पाने की बजह से खासकर भारत जैसे देश में इसके इतने प्रकार बताये जाते है की गिन पाना मुश्किल है . मगर जब कोई एक खास पड़ाव पर आता है तो वह इस दोराहे पर भ्रमित हो जाता है की जन्मजात संवेदना जिसे प्यार कहते है क्या संबधों के दायरे से बाहर नहीं हो सकती ,क्या कोई और जो उसका कोई नहीं लगता उससे भी प्यार हो सकता है, अब चूँकि प्रेम तो हो ही जाता है ,तो व्यक्ति बड़ी आपाधापी में फंस जाता है क्या करुँ या क्या ना करुँ, और फिर वो समाज के एकतरफा व्यबहार के चलते अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि 'प्रेम' को अपनी गलती समझकर बैठ जाता है.
फिर क्या कई सबाल उठ खड़े होते है, जो की कविता के माध्यम से बताने का प्रयास किया है, हलाँकि अगर खोज को जरी रखा जाये तो जबाब भी मिल जाते है,जो अब अगली पोस्ट का विषय होंगे ।

7 comments:

Mishra Pankaj said...

प्यार के कई प्रकार है ये बात तो सही है लेकिन  महसूस एक ही तरह होता है

ओम आर्य said...

sahi hai pyaar kai rup me samane aata hai .............our yah pyar hi hai jo apake dil se nikali hai......badhiya

रामकुमार अंकुश said...

यदि हम प्रेम न करें और प्रेमी ही बन जाएँ.....
तो कैसा हो! फिर शायद सारे भेदभाव ही ख़त्म हो जायेंगे

Mithilesh dubey said...

भाई वाह क्या बात है, दिल को छु गयी आपकी ये रचना। बहुत-बहुत बधाई...................

Udan Tashtari said...

अच्छी रचना.

Unknown said...

प्रेम धुन पर प्रेमपूर्ण लेख, और प्रेमी के सवालों को कविता के माध्यम से प्रस्तुत करने का आपका अंदाज़ काबिले तारीफ है
जब बात प्रेम की निकल ही आई है तो कुछ शब्द उस व्यक्ति के भी पढ़ लीजिये जिसने दिया अमृत पाया ज़हर -

Love is an open sky,
To be in love is to be on the wing. But certainly, the unbounded sky creates fear. And to drop the ego is very painful because we have been taught to cultivate the ego. We think the ego is our only treasure. We have been protecting it, we have been decorating it, we have been continuously polishing it, and when love knocks on the door, all that is needed to fall in love is to put aside the ego; certainly it is painful. It is your whole life's work, it is all that you have created -- this ugly ego, this idea that "I am separate from existence." This idea is ugly because it is untrue. This idea is illusory, but our society exists, is based on this idea that each person is a person, not a presence. The truth is that there is no person at all in the world; there is only presence. You are not -- not as an ego, separate from the whole. You are part of the whole. The whole penetrates you, the whole breathes in you, pulsates in you, the whole is your life. Love gives you the first experience of being in tune with something that is not your ego. Love gives you the first lesson that you can fall into harmony with someone who has never been part of your ego. If you can be in harmony with a woman, if you can be in harmony with a friend, with a man, if you can be in harmony with your child or with your mother, why can't you be in harmony with all human beings? And if to be in harmony with a single person gives such joy, what will be the outcome if you are in harmony with all human beings? And if you can be in harmony with all human beings, why can't you be in harmony with animals and birds and trees? Then one step leads to another.
-OSHO

रूपम said...

आप लोगों का मुझे प्रोत्साहित करने के लिए धन्यवाद
और अनुराग जी आपने जो ओशो वचन लिखे है ,अतुल्य है
ये वो सच्चाई है जिसे नाकारा नहीं जा सकता और नकारने बाले का अस्तित्व गुम हो जाता है .