Wednesday, 16 September 2009

जीवन जीना है तो शराब-ऐ-हँसी पीना है

आज जब हम बहुत व्यस्त है ,तो रोजाना की दौड़-धूप में जीवन को जीना ही भूल जाते है. चेहरों की हंसी अजनबी हो जाती है तो इसी रोज की दौड़-धूप से ही कुछ हंसी के पलों को चुराने की कोशिश है,कुछ इस तरह --

एक बस पकड़ रहा है,और एक सर क्योकि स्कूटर पंचर हो गया है और अब दफ्तर जाने में देर हो रही है; रिक्शे का पहिया टेढा हो गया है,बच्चे ज्यदा भर ,लिए अब उन्हें स्कूल जाने में देर हो रही है

यहाँ मैडम के बाल धुल रहे है उधर महाशय भूखे मर रहे है, महाशय को कोर्ट जाना है और मैडम को बुटीक दोनों को देर हो रही है , एक महिला देखो नोट झटक रही है तो दूसरी की नौकरी अधर में लटक रही है,जल्दी करो भाई कहीं देर न हो जाये

भाई साहब रात भर से जग रहे है,एक बेचारे बेवजह ही भग रहे है;अब क्या करें गार्ड की नौकरी और नाईट शिफ्ट ;दूसरे की ट्रेन छूट रही है मगर बाथरूम का पाइप चोक हो गया है तो कम से कम कमरे के चक्कर तो लगाये ही जा सकते है

एक का पेंट जाली हो गया तो दूसरे का खोपडा खाली हो गया ,बहुत दिनों से कपडे बनबाने का ध्यान ही नहीं रहा पीछे से पेंट छन गया,दूसरे की सुबह सुबह पोहेबाले से बहस हो गयी ,अरे अगर पैसे ले रहा है तो कम से कम प्याज़ तो डाल दिया कर

घर में जाले लटक रहे है,भैया जी चड्डे में मटक रहे है ओफ्फो यह बैंक एक्जीक्यूटिव की नौकरी सुबह से मुह मत धो ,भाई साहब को फ़ोन आ गया पहले प्लान समझाना पड़ेगा

बच्चो को स्कूल की भड-भडी है ,मैडम को पेट की पड़ी है ,सर्दी का ये समय आँखे खुली नहीं ठीक से और स्कूल-बस हार्न दे रही है ,वहां मैडम को बदहजमी हो गयी और तो और हेड-ऑफिस में कोई और घुसा है अब ये देर तो कीमती साबित हो सकती है

बस बाले का पट्रोल जल रहा है ड्राईवर खेनी मल रहा है भाई साहब के बच्चे पता नही क्या पट्रोल के दाम आसमान छु रहे है अबे खेनी तो कभी भी ठूंस सकता है

यहाँ मरने-मारने की सम्भावना बढ़ी है तुझे पीने की पड़ी है ,आपस में ठेकेदार लड़ रहे है की दारू कोंन बेचेगा,और नौजवान बिना पिए रह नहीं सकता "अरे पहले बाटली तो दे दो फिर लड़ लेना "

एक की जेब खाली हो गयी ,दूसरे की देखते ही हालत माली हो गयी ,अरे गुरु अब तो पैसा दे दो तीन साल हो गए आज तो जेब में इतना भी नहीं की सिगरेट पी लूं ,जबाब में " अरे भैया यहाँ तो जहर खाने के भी पैसे नहीं है " तीन साल से बस हवा खाके ही तो जिन्दा था वेचारा

इधर बिना धुले कपडे लटक गए वहां साहब रास्ता भटक गए , मैडम का सहेलियों में गप्पें हांकने का समय हो गया था तो बस कपडे खगाल-खगाल कर लटका दिए सूखने के लिए,वहां साहब को सब्र न था की ट्रेन कब तक जायगी कब फाटक खुलेंगे तो साहब पटरी पकडे-पकडे जाने कहाँ निकल गए सोचा था कहीं से कट लेंगे और जल्दी से जल्दी दुकान खोल लेंगे

पुलिस ने निर्दोष को धर दबोंचा ,मंत्री भिखारी के घर पहुंचा, अगर तीन दिनों के अंदर -अंदर लुटेरों का पता नहीं लगता तो पुलिस की नौकरी जा सकती है,चलो एक निर्दोष को ही बंद कर दिया ,कुछ नहीं से तो कुछ भला ;उधर आज मत्री साहब वोट मांगते-मांगते भिखारी के घर भी जा पहुंचे ,अब जरा आप ही बताइए भिखारी कौन.

3 comments:

Udan Tashtari said...

पढ़ रहे हैं और शराब-ऐ-हँसी पी रहे हैं.. :)

रामकुमार अंकुश said...

वाह! बहुत बढ़िया.....
अपने प्रहसन को मत करना कार्टूनिस्ट के हवाले
नहीं तो हो जायेंगे उसके बारे न्यारे....

sandhyagupta said...

KAi rang hain aapke blog par.Shubkamanyen.