Monday, 2 January 2012

प्रेम और विस्तार

आज फिर अनकहे को कहने की कोशिश करता हूँ 
हवा में एक तस्वीर बनाई है अब रंग  भरता हूँ 

दुनियां की लिखा पढ़ी का  सार नहीं दिखता
सच है बंद आँखों को  विस्तार नहीं दिखता 

खुद को देख पाने का  अच्छा अवसर पाया है 
हिम्मत कर परिंदा  फिर गगन को आया है 

बंधनों की परिभाषाओं के  सारे बंध तोड़ने है  
प्रेम की नज़र से इस जहां के राज खोजने है





4 comments:

parul mishra said...

mast hai :-)

parul mishra said...

ati uttam

Shah Nawaz said...

Waah... Bahut badhia!!!

Pallavi saxena said...

बेहतरीन प्रस्तुति ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है