आज फिर अनकहे को कहने की कोशिश करता हूँ
हवा में एक तस्वीर बनाई है अब रंग भरता हूँ
दुनियां की लिखा पढ़ी का सार नहीं दिखता
सच है बंद आँखों को विस्तार नहीं दिखता
खुद को देख पाने का अच्छा अवसर पाया है
हिम्मत कर परिंदा फिर गगन को आया है
बंधनों की परिभाषाओं के सारे बंध तोड़ने है
प्रेम की नज़र से इस जहां के राज खोजने है
4 comments:
mast hai :-)
ati uttam
Waah... Bahut badhia!!!
बेहतरीन प्रस्तुति ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
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