Wednesday, 15 September 2010

ख़ुदा-ए-जहान का भी अजीब किस्सा है

  ख़ुदा-ए-जहान का भी अजीब किस्सा है .
  क़त्ल हो रहा है जो, कातिल का ही हिस्सा है .

  बंद है आँखें उसकी और ध्यान गाफ़िल है.
  जो मिल रहा उसे वो नाम क़ातिल है.

  मरने वाले  को बेशक़, मौत कि न समझ आई है.
  क़ातिल के है जो सामने खुद उसकी ही सच्चाई है.

 क़त्ल और क़ातिल एक ही जहां कि बातें है 
 जो समझ सके वो समझ ले, एक ही सी साँसे हैं .

इंसानियत कि खाल में नकाबपोश मौन हैं.
न मरने वाला, न मारने वाला ये कुसूरवार कौन है.